दंतेश्वरी मंदिर , दतेवाडा, छतीसगढ

Danteshwari Temple in Dantewada, Chhattisgarh

दंतेश्वरी मंदिर 

दंतेश्वरी मंदिर छतीसगढ राज्य के बस्तर क्षेत्र के दतेवाडा जिले में स्थित है। यह मंदिर दंतेवाड़ा जिले के शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है।  यह मंदिर बस्तर क्षेत्र का एक आनोखा मंदिर है, जिसे माॅ दंतेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर घोर जंगल और पहाड़ों के बीच स्थित है। दतेवाडा जिले का नाम दंतेश्वरी माता के नाम पर रखा गया है। 

Danteshwari Temple in Dantewada


दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण लकडी के 24 खम्बों से किया गया है। इन खंबों में ओडिशा के कलाकारों द्वारा बहुत ही खूबसूरत नक्काशी की गई है। 

मंदिर में दंतेश्वरी माता की मूर्ति संगमरमर से निर्मित की गई है। मंदिर में विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित है जो लकडी के बने हुए है। दंतेश्वरी मंदिर में सरस्वती देवी की मूर्ति भी स्थापित की गई है।  सरस्वती देवी की मूर्ति की स्थापना 1958 में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने कराई थी। मंदिर के प्रवेश द्वार पर विष्णु के दस अवतारों का वर्णन किया गया है। उसके उपर गरूड का चित्र बना हुआ है। 

इस मंदिर में सिले हुए वस्त्रों को पहनकर जाने की मनाही है। यहां पुरूष केवल धोती यां लुगी पहनकर ही आ सकते हैं।

यह मंदिर एक प्रसिध्द शक्तिपीठ है। धार्मिक गंथों के अनुसार यह पर देवी सती का दांत गिरा था। इसलिए इस मंदिर का नाम दंतेश्वरी पडा। 

इस मंदिर का निर्माण 14वीं सदी में चालुक्य राजाओं ने किया था। इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय वास्तुकला में किया गया है। मंदिर में काले रंग के पत्थर की मूर्ति स्थापित है। यहां देवी की षष्टभुजी मूर्ति स्थापित है। छह भुजाओं में देवी ने दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशूल और बांए हाथ में घटी, पद्घ और राक्षस के बाल धारण किए हुए हैं। मंदिर में देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं। मूर्ति के ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। देवी के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। देवी माॅ वस्त्र आभूषण से सजी हुई है। मंदिर के द्वार पर दो द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं । मंदिर में भगवान गणेश, विष्णु, शिव की प्रतिमाएं भी स्थापित है। मंदिर में नवग्रह की प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर की छत खपरैल है। 
Danteshwari Temple


मंदिर के पास शंखिनी और डंकिनी नदियों के पास देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं। यह पर मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है। 

माँ दंतेश्वरी मंदिर के पास ही में माँ भुनेश्वरी का मंदिर है। माँ भुनेश्वरी माॅ दंतेश्वरी की छोटी बहन है। माँ भुनेश्वरी और माॅ दंतेश्वरी की आरती एक साथ होती है और एक ही समय भोग लगाया जाता है। माँ भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। 

इस मंदिर के एक और खासियत यह है कि इस मंदिर परिसर में एक स्तंभ है जिसके बारे में कहा जाता है कि जिस किसी भक्त के हाथों में यह स्तंभ समा जाता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। यह स्तंभ मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने है। जिसे गरूड़ स्तंभ कहा जाता है। जिसे श्रद्धालु पीठ की ओर से बांहों में भरने की कोशिश करते हैं। मान्यता है कि जिसकी बांहों में स्तंभ समा जाता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।

मंदिर में नवरात्रि के समय बहुत ही भीड होती है। मंदिर में शरद व चैत्र नवरात्रि पर  यहां हजारों मनोकामनाएं ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाते हैं।

रायपुर देश के अन्य भाग से सडक, रेल एवं वायु तीनो माध्यम से जुड हुआ है। आप रायपुर तक आसानी से पहॅुचे सकते है। रायपुर से दतेवाडा के लिए बस चलती है। आप यहाॅ से मंदिर तक आसानी से पहुॅच सकते है।
यह पर आपको रूकने के लिए धर्मशाला एवं निजी होटल मिल जाएगी । 

महालक्ष्मी मंदिर, कोल्हपुर, महाराष्ट्र / Mahalaxami Temple in Kolhapur, Maharashtra

Mahalaxami Temple 

महालक्ष्मी मंदिर


महालक्ष्मी मंदिर महाराष्ट्र राज्य के कोल्हपुर जिले में स्थित है। यह मंदिर मुंबई से लगभग 400 किमी की दूरी पर स्थित है। 


यह एक शाक्तिपीठ है। अलग अलग पुराणों मे शाक्तिपीठों की संख्या अलग अलग दर्जा है। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं। 

इस स्थल पर देवी सती माता के नेत्र गिरे थे। यह शाक्तिपीठ पूरी भारतवर्ष में प्रसिध्द है। 
Mahalaxami Temple in Kolhapur


मंदिर के बाहर लगे शिलालेख से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्‍दी में चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने करवाया था। माना जाता है कि इस मंदिर में स्‍थापित माता लक्ष्मी की प्रतिमा लगभग 7,000 साल पुरानी है। मंदिर के अन्दर नवग्रहों , भगवान सूर्य, महिषासुर मर्दिनी, विट्टल रखमाई, शिवजी, विष्णु, तुलजा भवानी आदि अनेक देवी देवताओं के भी मंदिर स्थित है। इसके अलावा मंदिर के आंगन में मणिकर्णिका कुंड पर विश्वेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है। 

Mahalaxmi Temple in Kolhapur


मंदिर में महालक्ष्मी की प्रतिमा एक काले पत्थर के मंच पर विराजमान है। महालक्ष्मी की चारों हाथों वाली प्रतिमा विराजमान है माता की प्रतिमा को कीमती गहनों से सजाया गया है। माता का मुकुट लगभग चालीस किलोग्राम वजन का है जो बेशकीमती रत्‍नों से मड़ा हुआ है। महालक्ष्मी की प्रतिमा की ऊंचाई करीब 3 फीट है। महालक्ष्मी की मूर्ति भी काले पत्थर से निर्मित है। मंदिर की एक दीवार पर श्री यंत्र पत्थर पर उकेरा गया है। देवी की मूर्ति के पीछे पत्‍थर से बनी उनके वाहन शेर की प्रतिमा भी स्थित है। देवी माॅ के मुकुट में भगवान विष्णु के प्रिय सर्प शेषनाग का चित्र बना हुआ है। महालक्ष्मी की पालकी सोने की है। महालक्ष्मी का मुख पश्चिम में है। देवी के सामने की पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की है, जिससे होकर सूरज की किरणें माता का अभिषेक करती है। हर साल मार्च और सितंबर महीनों के 21 तारीख के आसपास तीन दिनों के लिए  देवी लक्ष्मी का पग का अभिषेक करते मध्य भाग पर आती हैं और अंत में उनका मुखमंडल को रोशन करती हैं। 

माना जाता है कि नवरात्रि में यहां हर दिन देवी पालकी में बाहर आकर पूरे परिसर में भ्रमण करती हैं। हर नवरात्रि के उत्सव काल में माता जी की शोभा यात्रा कोल्हापुर शहर मंे निकाली जाती है। माता जी के दर्शन करने के लिए लाखों लोग आते है। 

हरसिध्दि माता का मंदिर:- उज्जैन

Harsiddhi Mata Mandir

हरसिध्दि माता का मंदिर


हरसिध्दि माता का मंदिर उज्जैन में स्थित है। उज्जैन में हरसिद्धि माता का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पीछे पश्चिम दिशा में स्थित है। दोनों मंदिरों के बीच पौराणिक रूद्रसागर स्थित है। दोनों मंदिरों में माता श्रीयंत्र के उपर विराजमान है। मंदिर परिसर में परमार कालीन बाबडी भी स्थित है। यह का मुख्य आकर्षण मंदिर परिसर में  स्थित विशालकाय दीप स्तभं है। जो नर एवं नारी का प्रतीक माने जाते है। दोनों स्तंभ में एक बडा एवं एक छोटा है। कुछ लोग इन्हें शिव एवं पार्वती का स्वरूप भी मानते है। दोनों स्तंभ में 1100 दीप है। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य माता के परम भक्त थे। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने हर बारह वर्ष में एक बार माता को अपना सिर अर्पण करते थे। ग्यारह बार उन्होने ऐसा किया तो उनका सिर जुड गया लेकिन बारहवीं बार में उनका सिर नहीं जुड पाया  एवं उनका जीवन समाप्त हो गया । आज भी मंदिर के एक कोने में सिंदूर लगे रूण्ड रखे है कहते है यह राजा विक्रमदित्य के सिर है। 
Harsiddhi Temple

यहां मंदिर 51 शक्ति पीठ में से भी एक है। सती माता के अंग जिस स्थल पर गिरे उस स्थान पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ है। इस स्थान पर सती माता की कोहनी गिरी थी। यह मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन के साथ साथ गुजरात के   द्वारका में भी स्थित है । मान्यता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने यहीं से माता को प्रसन्न करके उज्जैन लाए थे। तब माता ने विक्रमदित्य से कहा था कि दिन के समय मै यह और रात के समय तुम्हारे नगर में वास करूगी। इसलिए तब से सुबह की आरती गुजरात के मंदिर में होती है और शाम की आरती मध्यप्रदेश में । मान्यता है उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की यह कुलदेवी हैं । यह मंदिर तंत्र साधना के लिए भी प्रसिध्द है और मंदिर में माता हरसिध्दि के साथ साथ महालक्ष्मी माता और सरस्वती माता भी विराजमान है। 
यहां मंदिर उज्जैन रेल्वे स्टेशन से करीब 1 किमी की दूरी पर स्थित है। यहा पर आप किसी भी माध्यम से जा सकते है। यहां पर नवरात्री में बहुत ही अच्छा माहौल होता है। यहां पर मंदिर के समीप अनेक धर्मशालाएॅ स्थित है। आप इसके अलावा सरकारी गेस्ट हाउस में भी रूक सकते है। 

पेंच राष्ट्रीय उद्यान या इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उद्यान

Pench National Park or Indira Gandhi National Park

पेंच राष्ट्रीय उद्यान या इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उद्यान 

पेंच राष्ट्रीय उद्यान भारत का एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान है। यह राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश के सिवनी और छिन्दवाड़ा जिलों में स्थित है। यह उद्यान पर्यटन के लिए प्रसिद्व है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान को नाम बदलकर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उद्यान रखा गया है। इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम इस उद्यान को दो भागों में बांटने वाली पेंच नदी के नाम रखा गया है। यह नदी उद्यान के उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बहती है। इस उद्यान को 1993 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। पेंच राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण के लिए जाने के लिए दो गेट है। पहला गेट कर्मझिरी गाॅव में स्थित है और दूसरा टुरिया गा्रम में स्थित है। इन दोनो गेट पर वन विभाग, पर्यटन विभाग एवं प्राइवेट होटल एवं वाहनों की सुविधा पर्यटकों के लिए उपलब्ध रहती है। 



पार्क को पर्यटकों के भमण के लिए अक्टूबर से खोला जाता है तथा जून- जुलाई के बाद भ्रमण बंद कर दिया जाता है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान में आप बाघ, नीलगाय, बारहसिंगा, हिरन, मोर, बन्दर, काले हिरन, सांभर, जंगली सुअर, सोनकुत्ता एवं अन्य जानवर तथा अनेक प्रकार के पक्षी देख सकते है। उद्यान के बीचों बीच से पेंच नदी बहती है। नदी पर एक छोटा सा तालाब है, जिस पर तोतलाडोह बांध बना हुआ है। यह बांध वन्यजीवों की पानी की आवश्यकता को पूरा करता है। इसके आलवा बांध पर बिजली बनाई जाती है एवं मछली पालन भी किया जाता है। इसकी स्थापना 1984 में की गई थी। यह पार्क महाराष्ट्र् और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। इस पार्क में हिमालयी क्षेत्र से 210 प्रकार के पक्षी ठंडा के समय आते है। इस पार्क में झाड़ियों, बेलों, पेड़ - पौधों, जड़ी बूटीयों, और घास की अधिकता है। यहाँ पर पौधों की 1200 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 

रामवन:- यहां हर साल हनुमान जी की मूर्ति बढ जाती है

Ramvan Temple


रामवन

रामवन भारत देश के मध्यप्रदेश राज्य के सतना जिले में स्थित एक धार्मिक स्थल है। यह सतना जिले से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर रामपुर बाघेलन में स्थित है एवं रीवा जिले से लगभग 39 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह सतना जिले का एक प्रसिध्द स्थल है। यह पर आकर्षण का केन्द्र हनुमान जी की मूर्ति है। कहा जाता है कि यह हनुमान मूर्ति शाश्वत है और हर साल इसकी ऊंचाई बढ़ जाती है। इस मूर्ति को देखने के लिए पर्यटक आते है। इस स्थान पर बजरंगबली की विशाल प्रतिमा स्थापित है। 

हनुमान जी की मूर्ति


लोगों का कहना है कि बनारस निवासी व्यापारी बाबू शारदाप्रसाद ने सतना में व्यापार करने के लिए आए थे उन्होंने यहां एक गाडियों की एजेंसी खोली। कुछ समय बाद शारदाप्रसाद जी ने अपनी माता की स्मृति में छोटे से मारूति नंदन की स्थापना की। शारदाप्रसाद जी के गुरू को कुछ समय बाद स्वपन आया की हनुमान जी की बडी मूर्ति की स्थापना की जाये। इसके बाद उन्होंने ही 64 एकड़ जमीन खरीदकर रामवन की स्थापना की।  जिस पर उन्होने हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की। इसके साथ साथ तुलसी संग्रहालय, पंचवटी, आतिथिगृह भी बनबाया। अब यहां पर तुलसी संग्रहालय ३२ एकड़ में फैला हुआ है और रामवन 32 एकड़ में बसा है। हनुमान जी की प्रतिमा करीब 70 साल पुरानी बताई जाती है। यह पर बसंत पचंमी में मेला का आयोजन होता है। यह हनुमान प्रतिमा लगभग 36 फीट लम्बी है और 10 फीट का चबूतर है। रामवन में रामयाण के काण्ड को चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है। तुलसी संग्रहालय में विभिन्न धार्मिक ग्रंथ एवं हस्त लिखित रामायण भी है। पचवंटी में पाॅच प्रजतियों के पेड पाये जाते है जिनकी छाया के नीचे श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी ने परम कुटीर का निर्माण करके अपना कुछ समय बिताया था। 
रामवन स्थापित हनुमान मूर्ति के बारे में लोगो की धारणा है कि इस मूर्ति की ऊंचाई प्रतिवर्ष स्वयं बढ़ जाती है। यह मूर्ति शहर के किसी भी कोने में खडे होकर बजरंगबली के दर्शन किए जा सकते हैं।

देउर कोठार:- पुरात्वात्विक स्थल, सतना, मध्यप्रदेश

Deur Kothar

देउर कोठार

देउर कोठार भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रीवा जिले में स्थित एक पुरात्वात्विक स्थल है। यह रीवा के जिला मुख्यालय से लगभग 75 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। देउर कोठार, रीवा-इलाहाबाद मार्ग के सोहागी में स्थित है। यह स्थल अपने बौद्ध स्तूप के कारण प्रसिद्ध है जो १९८२ में प्रकाश में आये थे। ये स्तूप अशोक के शासनकाल में निर्मित किये गए थे। 

देउर कोठार 


यहां पर आपको लगभग 2 हजार वर्ष पुराने बौद्ध स्तूप और लगभग 5 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र गुफाएँ देखने मिल जाएगी। यहां पर मौर्य कालीन मिट्टी ईट के बने 3 बडे स्तूप और लगभग 46 पत्थरो के छोटे स्तूप बने है। इन स्तूपों के निर्माण के बारे में किदवंती है कि बौद्घ धर्म के प्रचारक दलाई लामा ने इस स्तूप की आधारशिला रखी  थी। इस स्थान का जिक्र बौद्घ धर्म की पुस्तकों में भी मिलता है। यह पर देशभर से लोग इस स्तूप में आते है। यह स्थल मध्यप्रदेश और उतर प्रदेश दो राज्यों से लगा हुआ है। यह स्थल बौद्घ भिक्षुकों की आस्था के केंद्र के रूप में माना जाता है।  देउर कोठार में भगवान बुद्घ व बौद्घ भिक्षुओं के प्रमाण मौजूद हैं। इस स्थल पर बौध्द भिक्षु ने तपस्या की और बौद्घ धर्म का प्रचार भी किया है। अशोक के शासन काल में विध्य क्षेत्र में बौध्द धर्म का प्रचार प्रसार किया गया था और स्तूपों का निर्माण किया गया। ऐसा माना जाता है कि यह स्तूप भरहुत से अधिक प्राचीन स्तूप है। यह स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों का शिक्षण केन्द्र था जिसके प्रमाण यह मिले है। यहंा पर खुदाई के दौरान तोरणद्वार के अवशेष, मौर्य कालीन ब्राही लेख के अभिलेख, शिलापट्ट स्तंभ और पात्रखंड बडी संख्या में मिल है 

शैलचित्र



मैहर :- सतना, मध्य प्रदेश

Maihar

मैहर

मैहर मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित एक छोटा सा नगर है। मैहर सतना जिले की तहसील है। यह एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थल है। मैहर में शारदा माता का मंदिर प्रसिद्ध है जो एक पहाडी के उपर स्थित है जहां से आप मैहर के प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शन कर सकते है। मैहर कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों में स्थित है। मैहर में शारदा माता का मंदिर त्रिकूट पर्वत के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर है और यहां 108 शक्ति पीठों में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर ‘नरसिंह पीठ’ के नाम से भी विख्यात है। स्थानीय लोगों के अनुसार आल्हा एवं ऊदल नाम के दो महान योध्दा थे जिन्होने पृथ्वी राज चैहान के साथ युध्द किया था। आल्हा एवं ऊदल दोनों भाई शारदा माता के उपासक थे। आल्हा एवं ऊदल ने ही जंगल में शारदा माता के मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने 12 साल तक तपस्या करके शारदा देवी को प्रसन्न किया था और माता ने उन्हें अमर होने का वरदान दिया था। आल्हा देवी शारदा को शारदा माई कहकर पुकरते थे। तब से यह मंदिर शारदा माई के नाम से प्रसिध्द हो गया । आज भी सबसे पहले दर्शन आल्हा और उदल ही करते है। मंदिर के पीछे पहाडी की तलहटी पर एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। तालाब से थोडा आगे एक आखडा है जिसमें आल्हा एवं उछल कुश्ती लडा करते थे। मां शारदा के बगल में प्रतिष्ठा नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की है। शारदा मंदिर शहर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर में शारदा देवी की एक पत्थर की मूर्ति है जिनके पैरों के पास एक प्राचीन शिलालेख है। आपको इस मंदिर तक पहुॅचने के लिए 1063 सीढियाॅ चढानी पडती है। इस मंदिर में पहुॅचने का एक मार्ग और है रोपवे । आप रोपवे के द्वारा मंदिर तक जा सकते है। इसके लिए आपको उचित चार्ज देना पडता है। मंदिर में शारदा माता के अलावा श्री काल भैरवी, हनुमान जी, देवी काली, श्री गौरी शंकर, शेषनाग, फूलमति माता, ब्रहमदेव एवं जालपा देवी की पूजा की जाती है। 
शारदा मंदिर में प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं । यहां पर वर्ष में दोनों नवरात्रों में  मेला लगता है जिसमें लाखों लोगों शारदा माता के दर्शन करने आते है। 

शारदा माता का मंदिर


मुक्तेश्वर :- नैनीताल, उत्तराखण्ड

Mukteshwar

मुक्तेश्वर 

मुक्तेश्वर भारत देश के उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में स्थित है। मुक्तेश्वर उत्तराखंड में कुमाऊं की पहाड़ियों में स्थित एक छोटा सा हिल स्टेशन है। यह कुमाऊँ की पहाडियों में २२८६ मीटर (७५०० फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से आप नंदा देवी, त्रिशूल आदि हिमालय पर्वतों की चोटियाँ देख सकते है। यहाँ एक पहाड़ी के ऊपर एक मन्दिर है जो २३१५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर मुक्तेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर शिव भगवान को समार्पित है। यहां भगवान शिव के साथ ब्रह्मा, विष्णु, पार्वती, हनुमान और नंदी की प्रतिमा विराजमान हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के बाहर आपको लंगूर  देखने को मिल जाएगी। यहां पर शिवरात्रि में बहुत भीड रहती है। 
मुक्तेश्वर 


मुक्तेश्वर मंदिर के पास चट्टानों में चैली की जाली है। ये जगह मुक्तेश्वर मंदिर के पास स्थित है। यहां पर आपको पहाड़ पर चढ़ाई करनी होती है तब जाकर आप यहां पहुच सकते है। ऐसा माना जाता है कि यहां देवी और राक्षस के बीच युद्ध हुआ था। यहां पहाड़ की चोटी है जिसकी सबसे ऊपर वाली चट्टान पर एक गोल छेद है। जिसके बारे में मान्यता है कि अगर कोई निःसंतान स्त्री इस छेद में से निकल जाए तो उसे संतान की प्राप्ति होती है। पहाड़ की चोटी से आप घाटी का सुंदर नजारा दिखता है।

चैाली की जाली

मुक्तेश्वर से आप उगते हुए सूरज का सुंदर नजारा देख सकते है।  
वैसे आप यहां पर साल में कभी भी जा सकता है परंतु यहां जाने का उचित समय मार्च से जून और अक्टूबर से नवंबर तक है। अगर आप गर्मियों में यहां जाएं तो हल्के ऊनी कपड़े और सर्दियों में जाएं तो भारी ऊनी कपड़े साथ ले जाएं। जनवरी में यहां बर्फबारी भी हो जाती है।

कैसे पहुचे 

यह दिल्ली से 350 किमी की दूरी पर स्थित है। आप दिल्ली से मुरादाबाद-हल्द्वानी-काठगोदाम-भीमताल से सडक मार्ग से होते हुए पहुच सकते है। 

काठगोदाम में रेल्वे स्टेशन स्थित है। काठगोदाम से मुक्तेश्वर 73 किमी की दूरी पर स्थित है। आप बस या टैक्सी से आसानी से पहुॅच सकते है। 

अगर आप वायु मार्ग से आना चाहते है तो नजदीकी हवाईअड्डा पंतनगर है जो मुक्तेश्वर से लगभग 100 किलोमीटर पहले है।

समुद्र कूप:- प्रयागराज, उतरप्रदेश

Samudra Koop

समुद्र कूप

समुद्र कूप भारत देश के उतरप्रदेश राज्य के प्रयागराज में स्थित एक ऐतिहासिक जगह है। समुद्र कूप प्रयागराज में गंगा के पार पुरानी बस्ती में स्थित है जिसे झूंसी कहा जाता है। यह कूप उल्टा किला के अन्दर स्थित है। समुद्र कूप बहुत उचे टीले पर है। 
समुद्रकूप का मतलब है:- समुद्र के पानी से बना कुंड । समुद्रकूप कई हजार साल पुराना है 



यह सैकड़ों फीट गहरा है। पुराणों में यह वर्णन मिलता है कि‍ इस कुंए मे सात समुद्रों का जल आकर मिलता है।
समुद्र कूप का व्यास लगभग 22 फीट है। यह कूप पत्थरों से बना है। समुद्रकूप का पूरा परिसर 10 से 12 फीट ऊंची ईंट की दीवारों से घिरा है। समुद्रकूप के पास एक आश्रम भी है जहां यह वर्णन मिलता है कि‍ द्वापर युग मे पांडव लाक्षागृह से बचने के बाद यहां आए थे।



नौलखा मंदिरः- बेगूसराय, बिहार

Naulakha Temple

नौलखा मंदिर

नौलखा मंदिर बेगुसराय शहर के मध्य में विष्णुपुर मुहल्ले के पास स्थित है। यह मंदिर बिहार के धार्मिक स्थल में से एक है। यह मंदिर करीब 100 साल पुराना है। मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। आजादी के बाद ही इस मंदिर की स्थापना की गई थी। मंदिर में राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान जी की मूर्तियां विराजमान है। मंदिर में एक पिंड की भी स्थापना की गई है। मंदिर में विभिन्न तरह की पेंटिग है।  मंदिर को अंदर और बाहर से विभिन्न प्रकार एवं विभिन्न आकार के कांच से संजाया गया है। लोगों का कहना है कि यह मंदिर उस समय में नौ लाख रूपये लगाकर बनाया गया था। इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर के अंदर का माहौल काफी शांत है। यह पर आकर आपको शंति मिलेगी। इस मंदिर के चारों ओर आपको हरियाली देखने मिल जाएगी। 
पूर्व में यह पर एक जंगल था। इस मंदिर का निर्माण 1953 में महंत महावीरदास जी ने कराया था। इस मंदिर के निर्माण में लगभग 10 वर्ष का समय लगा और 9 लाख रूपए का खर्च आया था । अतः इस मंदिर का नाम नवलखा मंदिर पड़ा । यह मंदिर सफेद एवं काले संगमरमर का बना है। इस मंदिर में कांच की सुंदर कारगीरी की गई है। 
यह मंदिर बेगुसराय जिले का एक अच्छा पिकनिक स्थल में से एक है। नवरात्री के समय यह पर बहुत भीड रहती है। 1 जनवरी के समय यह मेला भी लगता है। 

Danteshwari Temple in Dantewada, Chhattisgarh दंतेश्वरी मंदिर  दंतेश्वरी मंदिर छतीसगढ राज्य के बस्तर क्षेत्र के दतेवाडा जिले में स्थित...