कानवार झील पक्षी अभ्यारण्य :- बेगुसराय, बिहार

Kanwar Lake Bird Sanctuary

कानवार झील पक्षी अभ्यारण्य


यह पक्षी अभ्यारण्य भारत देश के बिहार राज्य के बेगुसराय जिले के मंझौल में स्थित है। यह अभयारण्‍य, बेगूसराय का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है जो काबर झील में स्थित है। इस अभयारण्‍य में लगभग 60 प्रजातियां, बाहर से आती है जिन्‍हे प्रवासी पक्षी कहा जाता है। वे सभी पक्षी, एशिया क उन हिस्‍सों से आते है जहां भंयकर सर्दी पड़ती है। इसके अलावा, इस अभयारण्‍य में स्थानीय पक्षी की 106 प्रजाति है। यह एक अच्छा स्थल है। यह फोटोग्राफी के लिए एक अच्छी जगह है। कावर झील एशिया की सबसे बड़ी शुद्ध जल की झील है । इस झील को पक्षी अभ्यारण्य का दर्जा सन् 1984 में बिहार सरकार ने दिया था। यह झील लगभग 42 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है। यह पर आप विभिन्न प्रकार के पक्षी देख सकते है जैसे सारस क्रेन , ग्रेटर एडजुटेंट , ग्रेटर स्‍पॅाटेड ईगल, पेटेंड स्‍टॉर्क और सारस , ब्लैक ब्लिड वाले टर्न ,  व्हाइट बैक्‍ड गिद्ध और लांग बिल्‍ड गिद्ध आदि।

Kanwar Lake Bird Sanctuary


काबर झील :- बेगूसराय, बिहार

Kabar Jheel

काबर झील 

यह झील बेगूसराय के मंझौल प्रखंड में स्थित है। काबर झील जो एशिया के सबसे बड़े मीठे पानी के झील में से एक माना जाता है । यह झील लगभग ६४ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुई थी। किन्तु अब इसका क्षेत्रफल सिमटकर ४२ वर्ग किलोमीटर रह गया है।  काबर झील घरेलू और प्रवासी पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियों का आश्रय है। इस क्षेत्र में साइबेरिया और हिमालय क्षेत्र के पक्षी यहां सर्दियों के मौसम में देख सकते हैं.
काबर झील मछलीयों का भी प्रमुख स्रोत है और इसमें मछलियों की विभिन्न प्रजाति पायी जाती है जिसे इस क्षेत्र के लोगो में पकडतें है। यह स्थानीय मल्लाह रोजगार का भी साधन रहा है. 
कावर झील एशिया का सबसे बड़ी शुद्ध जल की झील है और यह पक्षी अभयारण्य (बर्ड संचुरी) भी है। इस पक्षी अभयारण्य में 59 तरह के विदेशी पक्षी और 107 तरह के स्थानीय पक्षी ठंडे के मौसम मे देखे जा सकते है। इस स्थल में पुरातत्वीय महत्व का बौद्धकालीन हरसाइन स्तूप इसी क्षेत्र में स्थित है।



जयमंगलागढ़ मंदिर :- बेगूसराय जिले, बिहार

Jaimangla Garh

जयमंगलागढ़ मंदिर

जयमंगलागढ़ देश के 52 शक्तिपीठों में एक है। यह पर माता जयमंगला की पूजा प्राचीनकाल से होती आ रही है। यह मंदिर बेगूसराय जिले के मंझौल प्रखंड में स्थित है। इस मंदिर में बलि की प्रथा नहीं है। यह मंदिर काफी प्राचीन है। जयमंगला मंदिर परिसर के भग्न अवशेष एवं शिलालेखों से यह पता चलता है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। इस मंदिर के गर्भग्रह में माता की मूर्ति विराजमान है। कहा जाता है कि यहां पर देवी सती का वाम स्कंध गिरा था। जिसके कारण ये स्थल यह सिद्ध शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि माता जयमंगला किसी के द्वारा स्थापित नहीं, अपितु स्वतः प्रकट है। यह देवी माॅ भक्तो के कल्याण और राक्षसों के अंत के लिए स्वत ही वन में प्रकट हुई है। इस मंदिर की सबसे बडी विशेषता यह है कि यहां पर रक्तविहीन पूजा होती है। देवी मां को फूल, जल, नरियल एवं पूजा से ही प्रसन्न किया जाता है। इस मंदिर में संपुट सप्तशती पाठ का बहुत महत्व है। यह पर शारद और बंसत नवरात्री में कलश स्थापना की जाती है। उसके पश्चात् प्रत्येक दिन पंडितों के द्वारा संपुट शप्तशती पाठ किया जाता है। 

नवरात्री में यह पर लोगों की भीड जमा हो जाती है। लोगों माॅ की पूजा करते है जिससे उनको मनोवांछित फल मिलता है। यह पर दूसरे राज्य से भी श्रध्दालु आते है। 

ऐसे पहुंचें मंदिर

मंदिर पहुंचने का रास्ता आसान है। बेगूसराय से होकर एसएच 55 के रास्ते नित्यानंद चैक मंझौल पहुंचें। यहां से गढ़पुरा पथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर भव्य जयमंगला द्वार से बाएं जयमंगलागढ़ है। हसनपुर-गढ़पुरा की ओर से भी जयमंगलागढ़ जाया जा सकता है।  


कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व बाघ अभयारण्य :- मंडला एवं बालाघाट, मध्य प्रदेश

Kanha National Park or Tiger Reserve

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व बाघ अभयारण्य


कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व बाघ अभयारण्य भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य के मंडला  एवं बालाघाट जिलों में स्थित है. कान्हा नेशनल पार्क में हम बाघों के अलावा पृथ्वी पर सबसे दुर्लभ हिरण प्रजातियों में से एक - बारहसिंगा (दलदली हिरण) को भी देखने का मौका मिलता हैं। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य हरे भरे साल एवं बांस के पेड घास के मैदान तथा शुद्ध व शांत वातावरण किसी भी व्याक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह प्रकृति प्रमियों के लिए एक स्वर्ग से कम नहीं है। कहा जाता है कि लेखक श्री रुडयार्ड किपलिंग को ‘जंगल बुक’ नामक विश्व प्रसिद्ध उपन्यास लिखने के लिए इसी जंगल से प्रेरणा मिलीं थी। इस पार्क में आप तेंदुआ, गौर (भारतीय बाइसन), चीतल हिरण, सांभर, बार्किंग डीयर, सियार इत्यादि 22 स्तन धारी जानवरों, पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियों, 29 सरीसृप और हजारों कीट देख सकते हैं। यह पर आप वन्य प्राणी को देखने के अलावा बैगा और गोंड अदिवासियों की  संस्कृति व रहन सहन को देख सकते है।





कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना अभ्यारण्य में से एक है। इस उद्यान को 1879 में आरक्षित वन तथा 1933 में अभयारण्य घोषित किया गया था और कान्हा 1955 में एक राष्ट्रीय उद्यान बन गया। यह 1973 में बाघ अभयारण्यों की सूची में शामिल हो गया।

कहा जाता है इस क्षेत्र की काली मिटटी बहुत उपजाउ है जिसे कानहर के नाम से जाना जाता है। इस कारण इस वन क्षेत्र का नाम कान्हा पडा । एक अन्य कहानी भी प्रचालित है जिसके अनुसार कालिदास जी द्वारा रचित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ में वर्णित ऋषि कण्व यहां के निवासी थे तथा उनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम कान्हा पड़ा.

यह पार्क 940 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। मैकाल पहाड़ी रेंज इसकी पूर्वी सीमा बनाती हैं. यह समुद्र स्तर से 2000 से 3000 फुट तक की उचाई पर स्थित है.  ऊँचाई वाले समतल पठारों में घास के मैदान के रूप में है इसे स्थानीय भाषा में दादर के नाम से जाना जाता है. बम्हनी दादर नामक पठार कान्हा का सबसे ऊँचा स्थान है. नर्मदा नदी की दो सहायक नदियां बंजर व हलोन इस पार्क के बीच से बहती है


कान्हा के पर्यटन आकर्षण

बारहसिंगा

बारहसिंगा
बारहसिंगा या दलदल का मृग हिरन की एक प्रकार की जाति है । यह एक दर्लुभ प्रजति है। बारहसिंगा की यह विशेषता है कि इसकी सींग दो नही होती है दो से अधिक होती है। वयस्क नर में इसकी सींग की १०-१४ शाखाएँ होती हैं, हालांकि कुछ की तो २० तक की शाखाएँ पायी गई हैं। इस कारण इन्हें बारहसिंगा कहते है।



बाघ को देखना

आप कान्हा नेशनल पार्क में बाघों को नजदीक से देख सकते है। बाघ का देखने के लिए पर्यटकों को हाथी की सवारी की सुविधा दी गई है।


Tigar

पक्षी

कान्हा नेशनल पार्क में विभिन्न प्रकार के पक्षी आपको देखने मिल जाएगें। यहां पर लगभग 300 पक्षियों की प्रजातियां हैं। पक्षियों की इन प्रजातियों में स्थानीय पक्षियों के अतिरिक्त सर्दियों में आने प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं।


Birds

कान्हा संग्रहालय

कान्हा नेशनल पार्क में आप कान्हा संग्रहालय को देख सकते है। जिससे आपको कान्हा के इतिहास के बारे मे पता लग सके। इस संग्रहालय में कान्हा का प्राकृतिक इतिहास संचित है। संग्रहालय यहां के शानदार टाइगर रिजर्व का दृश्य प्रस्तुत करता है। इसके अलावा यह संग्रहालय कान्हा की रूपरेखा, क्षेत्र का वर्णन और यहां के वन्यजीवों में पाई जाने वाली विविधताओं के विषय में जानकारी प्रदान करता है।



बामनी दादर

यह पार्क का सबसे खूबसूरत स्थान है। यहां का मनमोहक सूर्यास्त पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। घने और चारों तरफ फैले कान्हा के जंगल का विहंगम नजारा यहां से देखा जा सकता है। इस स्थान के चारों ओर हिरण, गौर, सांभर और चैसिंहा को देखा जा सकता है।



दुर्लभ जन्तु

कान्हा नेशनल पार्क मे आपको अनेक जीव जन्तु मिल जाएंगे जो दुर्लभ हैं।



जीप सफारी

जीप सफारी सुबह और दोपहर को प्रदान की जाती है। जीप मध्य प्रदेश पर्यटन विकास कार्यालय से किराए पर ली जा सकती है। सफारी का समय सुबह ६ बजे से दोपहर के १२ बजे तक और दोपहर मे ही ३ बजे से शाम के ५रू३० बजे तक निर्धारित किया गया है। एक जिप्सी में 6 लोगों को भ्रमण की अनुमति दी जाती जिससे वे प्रकृति का आनंद ले सके और उनके प्राकृतिक घर में जंगली जानवरों को देख सकते हैं। बुधवार को शाम के समय अभयारण्य पर्यटन के लिए बंद रहता है । सफारी के प्रवेश परमिट होना जरूरी है। प्रवेश परमिट आप सीधे MP-ONLINE कि वेबसाइट से बुक किया जा सकता है। जंगल एवं जानवरो को समझाने के लिए एक गाइड  वन विभाग द्वारा प्रवेश द्वार पर ही किया जा सकता है। यहां सफारी चार जोन में होती है कान्हा, किसली, सरही तथा मुक्की ।


Jeep Safari


कान्हा नेशनल पार्क के चारो ओर बफर क्षेत्र में आदिवासी लोग रहते है। जिससे आपके उनकी संस्कृति और दैनिक कार्यकलाप देखने के लिए गांव का भ्रमण भी कर सकते है तथा जंगल को पास से देखने व समझने के लिए एव  पक्षी निहारने के लिए पैदल जंगल भ्रमण किया जा सकता हैं। कान्हा नेशनल पार्क के प्राकृतिक परिवेश और शांत वातावरण में साधारण स्वस्थ भोजन, योग और ध्यान के साथ स्वास्थ्य पर्यटन का आनंद भी लिया जा सकता है. आप यह पर फोटोग्राफी भी कर सकते है। कान्हा में विभिन्न प्रकार के पक्षी एवं अन्य जंगली जीव का आप फोटो भी ले सकते है।



कान्हा नेशनल पार्क 1 अक्टूबर से 30 जून तक खुला रहता है। सर्दियों में यह इलाका बेहद ठंडा रहता है। सर्दियों में गर्म और ऊनी कपड़ों की आवश्यकता होगी। नवम्बर से मार्च की अवधि सबसे सुविधाजनक मानी जाती है। दिसम्बर और जनवरी में बारहसिंहा को नजदीक से देखा जा सकता है।


यह पर आपको ठहरने के लिए काफी होटल मिल जाएगें । आप यह पर उचित मूल्य देकर रूक सकते है।

कान्हा नेशनल पार्क कैसे पहुॅचे

वायु मार्ग

कान्हा नेशनल पार्क से लगभग 266 किलोमीटर की दूरी पर नागपुर एयरपोर्ट स्थित है। यह इंडियन एयरलाइन्स की नियमित उड़ानों से जुड़ा हुआ है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कान्हा नेशनल पार्क पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग

जबलपुर रेलवे स्टेशन कान्हा नेशनल पार्क का सबसे नजदीकी स्‍टेशन है। जबलपुर कान्हा से लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से राज्य परिवहन निगम की बसों या टैक्सी से कान्हा पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग

कान्हा राष्ट्रीय पार्क सडक के माध्यम से राज्य के मुख्य शहर जैसे जबलपुर, खजुराहो, नागपुर, मुक्की और रायपुर से सीधा जुड़ा हुआ है।

मदन महल किला या रानी दुर्गावती का किला:- जबलपुर, मध्य प्रदेश

Madan Mahal Fort or Durgawati Fort

मदन महल किला या रानी दुर्गावती का किला 

यह किला भारत के मध्यप्रदेश राज्य के जबलपुर जिले मे स्थित है। यह जबलपुर के मदनमहल क्षेत्र में स्थित है। यह किला जमीन से लगभग ५०० मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है। इस किले को गौंड़ राजा मदन शाह द्वारा 1100 ई में बनाया गया था। यह किला आज खंडहर में तब्दील हो चुका है फिर भी यहां पर आप शाही परिवार का मुख्य कक्ष, युद्ध कक्ष, छोटा सा तालाब और अस्तबल देख सकते हैं। यह भवन अब भारतीय पुरातत्व संस्थान की देख रेख में है। यह किला राजा की मां रानी दुर्गावती से भी जुड़ा हुआ है, जो कि एक बहादुर गोंड रानी के रूप के जानी जाती है। माना जाता है कि मुगलों द्वारा हमले किए जाने के कारण इस किले को उस समय वाॅच टावर के रूप मे बदलना पडा। इस किले में गुप्त सुरंग मिली थी जिन्हें अब बंद कर दिया गया है। माना जाता है कि यह सुंरग मंडला जाकर खुलती थी। इस सुरंग के रास्ते रानी दुर्गावती मंडला से इस किले तक आती थीं। किले के रास्ते में शारदा मंदिर भी स्थित है। कहा जाता है कि रानी दुर्गावती इस मंदिर में पूजा करती थी। इस किले के बारे मे एक कहानी प्रचलित है कि यहां दो सोने की ईटें गड़ी हुई हैं। जिसे अब तक कोई खोज नहीं जा सका है। यह कहानी एक कहावत के कारण प्रचलित हुई है। 

मदन महल की छाँव में, दो टोंगों के बीच।
जमा गड़ी नौं लाख की, दो सोने की ईंट


Madan Mahal Fort

मदन महल किले को एक बडी ग्रेनाईट चटटान को तराशकर बनाया गया है। किले की चोटी से आप जबलपुर शहर का खूबसूरत नजारा देख सकते है। मदन महल का किला जबलपुर रेल्वे स्टेशन से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है और मदन महल स्टेशन से 2 किमी की दूरी पर स्थित है। आप इस किले में मेट्रो बस आॅटो या अपने निजी वाहन से पहुॅच सकते है। 













चैासठ योगिनी मंदिर :- जबलपुर , मध्यप्रदेश

Chausath Yogini Temple

चैासठ योगिनी मंदिर

यह मंदिर भारत देश के मध्यप्रदेश राज्य के जबलपुर जिले मे स्थित है। यह मंदिर जबलपुर में भेडाघाट क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर गोलाकार अर्थात वृत्ताकार बना हुआ है। इस मंदिर परिसर के बीच एक खूबसूरत नक्काशीदार मंदिर बना है। जिसके गर्भगृह में शिव और पार्वती की मूर्तियाॅ विराजमान है। यह प्रतिमा दुर्लभ है। शिव और पार्वती की श्रृंगार युक्त नंदी पर सवार प्रतिमा देश मे कहीं भी नहीं है। यह पर चैसठ योगिनी भी विराजमान है। शोध कर्ताओ का मनाना है कि यह पर 81 योगिनीयाॅ विराजमान है। यह पर स्थित प्रत्येक मूर्ति की अपनी अलग आभा और खसियत है।  यह मंदिर उंची पहाडी पर बना है। मंदिर तक जाने के लिए सीढियों का प्रयोग किया जाता है। चैसठ योगिनी मंदिर  के सबसे पुराने विरासत स्थलों में से एक है। यह 10 वीं शताब्दी ईस्वी में कलचुरी साम्राज्य द्वारा बनाया गया था । मंदिर 64 योगिनियों के साथ देवी दुर्गा जी की प्रतिमा स्थित है। इस मंदिर में आप मेट्र्ो बस या निजी वाहन से भी जा सकते है। 

Chausath Yogini Temple

Dhuandhar Falls (Jabalpur) / धुआधार जलप्रपात (जबलपुर)

Dhuandhar Falls

धुआधार जलप्रपात

धुआधार जलप्रपात जबलपुर में भेडाघाट क्षेत्र मे स्थित एक झरना है। यह झरना नर्मदा नदी पर स्थित है और यह झरना 30 मीटर ऊंचा है। इस झरने मे दूधिया रंग का पानी जब उपर से नीचे गिरता है तो पानी धुआ बनकर उडता है। इसलिए इसे धुआधार कहते है। यह दृश्य अदुभृत करने वाला होता है। लोग अपने परिवार और दोस्तो के साथ धुआधार आते है। नर्मदा नदी का पानी तेज गति से चटटाने से होता हुआ नीचे गिरता है जिससे पानी के गिरने की आवाज आती है वैसे तो पानी भी धुआ बनकर उड जाता है। धुआधार आप अपने वाहन या मेट्रो बस से भी जा सकते है । प्राइवेट आटो से भी धुआधार जाया जा सकता है। धुआधार जाते समय आपको धुआधार मार्ग पर दोनो ओर दुकाने दिखाई देती है जहा पर मार्बल का समान मिलता है और भी दुकाने होती है जै खिलौने एव खाने पीने की दुकान आदि । यह पर आप रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है आप रोपवे का मजा भी ले सकते है। रोपवे से आप नर्मदा नदी और धुआधार का शानदार नजारा देख सकते है।


Dhuandhar_Falls
Dhuandhar Falls



Marble Rocks

मार्बल रॉक्स या संगमरमर की चटटाने 

मार्बल रॉक्स या संगमरमर की चटटाने जबलपुर जिले के भेडाघाट क्षेत्र में स्थित है। नर्मदा नदी, जो विश्व प्रसिद्ध संगमरमर चट्टानों के बीच से अपना रास्ता बनाती है । नदी के दोनो तरफ संगमरमर की चटटाने है। यहां पर बोटिग का मजा ले सकते है। यहां पर बंदर कुदनी नाम का भी स्थान है। जहां पर बदंर नदी मे एक स्थान से दूसरे स्थान पर छलांग लगाकर पार कर जाते थें। मगर अब यह जगह बहुत फैल गई है। चांदनी रात में, नर्मदा नदी पर नाव का सफर बहुत ही शानदार होता है। 




Marble Rocks




Danteshwari Temple in Dantewada, Chhattisgarh दंतेश्वरी मंदिर  दंतेश्वरी मंदिर छतीसगढ राज्य के बस्तर क्षेत्र के दतेवाडा जिले में स्थित...